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कविता

हम साथी

त्रिलोचन


चोंच में दबाए एक तिनका
गौरय्या
मेरी खिड़की के खुले हुए
पल्ले पर
बैठ गई
और देखने लगी
          मुझे और
                  कमरे को।
मैंने उल्लास से कहा
                  तू आ
            घोंसला बना
      जहाँ पसंद हो
शरद के सुहावने दिनों से
हम साथी हों।

 


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