चोंच में दबाए एक तिनका गौरय्या मेरी खिड़की के खुले हुए पल्ले पर बैठ गई और देखने लगी मुझे और कमरे को। मैंने उल्लास से कहा तू आ घोंसला बना जहाँ पसंद हो शरद के सुहावने दिनों से हम साथी हों।
हिंदी समय में त्रिलोचन की रचनाएँ